खास बातें
- दादा केविन पैट्रिक कुरेन ने खेले 7 फर्स्ट क्लास मैच
- पिता केविन कुरेन रहे हैं जिंबाब्वे की 83 विश्व कप टीम के सदस्य
- तीनों भाइयों में सबसे प्रतिभाशाली निकले सैम कुरेन
लंदन: बर्मिंघम में भारत के खिलाफ पहले और अपने करियर के दूसरे ही टेस्ट मैच में मैन ऑफ द मैच बनने वाले सिर्फ 20 साल के ऑलराउंडर सैम कुरेन की इंग्लिश मीडिया ही नहीं, समूचे विश्व में चर्चा का विषय बने हुए हैं. जिस अंदाज में उन्होंने बर्मिंघम में भारतीय टॉप ऑर्डर को तहस नहस किया, वह आने वाले सालों तक करोड़ों भारतीय क्रिकेटप्रेमियों के जहन में बसा रहेगा. बहरहाल हम आपको बता दें कि सैम कुरैन को तराशने में वास्तव में दो पीढ़ियां खर्च हुई हैं.
सबसे पहले बात सैम कुरेन के दादा केविन पैट्रिक कुरेन की कर लेते हैं. केविन ने 1947-48 से 1954-55 के बीच जिंबाब्वे में सात फर्स्ट क्लास मैच खेले. इनमें उन्होंने 1 अर्धशतक सहित 23.40 के औसत से 234 रन बनाए. दादा केविन पैट्रिक के बाद आए केविन कुरेन. फिलहाल इंग्लैंड में बस चुके केविन कुरेन ने जिंबाब्वे के लिए 11 अंतरराष्ट्रीय वनडे मैच खेले. इसमें उन्होंने 26.09 के औसत से 287 रन बनाए, तो दाएं हाथ के तेज गेंदबाज केविन कुरेन ने इन मैचों मे 9 विकेट भी लिए. केविन कुरेन साल 1983 विश्व कप में भारत के खिलाफ खेलने वाली जिंबाब्वे टीम का हिस्सा भी थे.
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इसके बाद नंबर आता है सैम कुरेन के सबसे बड़े भाई 23 साल के टॉम कुरेन का दो इंग्लैंड के लिए 2 टेस्ट और आठ वनडे मैच खेल चुके हैं. टॉम भी ऑलराउंडर हैं और लंबे समय से इंग्लिश टीम से बाहर हैं. टॉम के बाद 22 साल के बेन कुरेन हैं, जो नॉर्थन्ट्स के लिए एक टी-20 मैच खेले हैं. लेकिन तीनों भाइयों में सबसे छोटे सैम कुरेन ने दिदिखा दिया है कि वह अपने परिवार की लंबी विरासत को आने वाले समय में कहीं ज्यादा ऊंचाई देने जा रहे हैं.
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भारत के खिलाफ पहले ही टेस्ट में मैन ऑफ द मैच झटकर सैम कुरेन दुनिया भर को दिखा दिया कि आने वाले समय में उनका विश्व क्रिकेट में जमकर सिक्का चलने जा रहा है.