एक सवाल ने बदल दी थी निकहत जरीन की राह, "लड़कियां क्यों नहीं खेल रही"

मुक्केबाजी के लिए बनियान और शॉर्ट पहननी पड़ती थी और मुस्लिम समुदाय से आने के कारण निकहत और उनके परिवार को तानों का भी सामना करना पड़ा

एक सवाल ने बदल दी थी निकहत जरीन की राह,

मैंने देखा कि मुक्केबाजी के अलावा सभी खेलों में लड़कियां थी.’

खास बातें

  • निकहत जरीन के पिता ने सुनाई पूरी कहानी
  • मुश्किल दौर था शुरुआत में
  • लोगों ने काफी कुछ कहा-हमने सब सह लिया
नई दिल्ली:

फर्राटा धाविका बनने के लिए ट्रेनिंग ले रही युवा और मासूम निकहत जरीन (Nikhat Zareen) ने एक बार अपने पिता से पूछा था कि मुक्केबाजी में लड़कियां क्यों नहीं खेलती?, क्या मुक्केबाजी सिर्फ पुरुषों का खेल है? यह लम्हा फ्लाइवेट वर्ग में हाल में विश्व चैंपियन बनी निकहत के लिए जीवन बदलने वाला रहा.

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इस सब की शुरुआत गर्मियों की एक शाम हुई जब पूर्व फुटबॉलर और क्रिकेटर मोहम्मद जमील ने अपनी बेटियों को बाहर खिलाने के लिए ले जाने का फैसला किया. जमील ने कहा, ‘‘मैंने उन्हें कहा कि हम मैदान पर जाकर खेलेंगे जिससे कि वे कुछ सीख सकें. वहां कोई बास्केटबॉल खेल रहा था, कोई हैंडबॉल खेल रहा था.'' उन्होंने कहा, ‘‘कुछ दिन देखने के बाद मैंने निकहत की भाव भंगिमा देखी और मुझे पता चल गया कि वह खिलाड़ी बनेगी. इसलिए मैंने एक ट्रैक सूट खरीदा और उसे कहा कि हम कल ट्रेनिंग के लिए जाएंगे.'' जमील ने निकहत को 100 और 200 मीटर दौड़ की ट्रेनिंग दी और वह जल्द ही जिला चैंपियन बन गई. इसके बाद एक दिन मुक्केबाजी ने उनका ध्यान खींचा.


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निकहत ने स्वर्ण पदक जीतने के घंटों बाद कहा, ‘‘जहां मैं अपने पिता के साथ ट्रेनिंग के लिए जाती थी जहां शहरी खेल हो रहे थे और मैंने देखा कि मुक्केबाजी के अलावा सभी खेलों में लड़कियां थी.'' उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उनसे पूछा था कि लड़कियां क्यों नहीं खेल रही, क्या मुक्केबाजी सिर्फ पुरुषों का खेल है?'' जमील को इससे झटका लगा लेकिन उन्होंने निकहत समझाया कि मुक्केबाजी साहसिक लोगों का खेल है और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह लड़का है या लड़की.'' उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उसे कहा कि उसे मानसिक रूप से मजबूत होना होगा, मुक्केबाजी के लिए ताकत और गति चाहिए. तुम्हारे अंदर अपने सामने खड़े व्यक्ति को हिट करने का साहस और मजबूती होनी चाहिए.'' निकहत ने इसके जवाब में कहा, ‘‘मैं खेलूंगी.'' इसके बाद वह लड़कों के साथ ट्रेनिंग करने लगी क्योंकि निजामाबाद में लड़कियां मुक्केबाजी नहीं करती थी.

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मुक्केबाजी के लिए बनियान और शॉर्ट पहननी पड़ती थी और मुस्लिम समुदाय से आने के कारण निकहत और उनके परिवार को तानों का भी सामना करना पड़ा.जमील ने कहा, ‘‘यह ग्रामीण जिला है. यहां लोगों को खेल की उतनी जानकारी नहीं है. एक लड़की और वह भी मुस्लिम समुदाय से खेलने आ रही है यह लोगों को नहीं पता था.'' उन्होंने कहा, ‘‘जब उसने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक जीता तो लोगों के पता चला. कई लोगों ने कहा यह क्या है? कैसे कपड़े पहने हैं? क्या फिगर है? मार लग जाएगी तो कौन शादी करेगा? जीवन खराब हो जाएगा. मैं सिर्फ सुनता रहता था.'' निकहत ने हालांकि विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर सभी बातों पर विराम लगा दिया है.