
जारी ओलंपिक खेलों में रविवार को कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचने वाली मनु भाकर (Manu Bhakar) के पास वास्तव में एक समय मैच के दौरान गोल्डेन-गर्ल बनने का सुनहरा मौका था, लेकिन गोल्ड-इलिमिनेटर में वह सिर्फ 0.1 प्वाइंट से पिछड़ गईं. और इसका नतीजा यह हुआ कि मुकाबला खत्म होते-होते कुल स्कोर में उनके और स्वर्ण पदक विजेता के बीच बहुत ही ज्यादा अंतर हो गया. वह
भाकर ने महाकुंभ की शूटिंग स्पर्धा में भारत के 12 साल का सूखा खत्म करते हुए पदक जीतकर इतिहास में पहली भारतीय महिला बनने का गौरव हासिल किया. इससे पहले साल 2012 में लंदन में विजय कुमार ने 25 मी. रेपिड फायर पिस्टल में रजत, जबकि गगन नारंग ने 10 मी. एयर राइफल में कांस्य पदक जीता था. साल 2016 में रियो और फिर तोक्यो ओलंपिक से भारतीय शूटर खाली हाथ लौटे, लेकिन अब इस दुख को मनु भाकर ने खत्म कर दिया है.
हरियाणा के झज्जर की रहने वाली 22 साल की मनु ने आठ निशानेबाजों के फाइनल में 221.7 अंक के साथ तीसरे स्थान पर रहते हुए कांस्य पदक जीता. लेकिन भारतीय निशानेबाज जब बाहर हुईं तो दक्षिण कोरिया की येजी किम से सिर्फ 0.1 अंक पीछे थीं जिन्होंने अंतत: 241.3 अंक के साथ रजत पदक जीता. वहीं, किम की हमवतन ये जिन ओह ने 243.2 अंक से फाइनल के ओलंपिक रिकॉर्ड स्कोर के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया.
पेरिस के आंसुओं को जश्न में बदला भाकर ने
तीन बरस पहले तोक्यो में अपने पहले ओलंपिक में पिस्टल में खराबी आने के कारण निशानेबाजी रेंज से रोते हुए निकली मनु भाकर ने जुझारूपन और जीवट की नयी परिभाषा लिखते हुए पेरिस में पदक के साथ उन सभी जख्मों पर मरहम लगाया और हर खिलाड़ी के लिये एक नजीर भी बन गईं. तोक्यो ओलंपिक के बाद कुछ दिन अवसाद में रही मनु ने करीब एक महीने तक पिस्टल नहीं उठाई, लेकिन फिर उस बुरे अनुभव को ही अपनी प्रेरणा बनाया और पेरिस ओलंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल में कांसे के साथ भारत का खाता भी खोला. कांटे के फाइनल में जब तीसरे स्थान के लिये उनके नाम का ऐलान हुआ तो उनके चेहरे पर सुकून की एक मुस्कान थी.
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