'फ़ेंसिंग खेलने के लिए झूठ बताती थी पिता की आमदनी: भवानी देवी

पिछले ही हफ़्ते तमिलनाडु की भवानी देवी (Bhavani Devi) की वजह से फ़ेंसिंग (Fencing) को रातोंरात भारत में  एक बड़ी पहचान मिल गई. ओलिंपिक्स के सवा सौ साल के इतिहास में ये पहला मौक़ा  है जब किसी भारतीय को ओलिंपिक्स (Tokyo Olympic) का टिकट हासिल हुआ है

'फ़ेंसिंग खेलने के लिए झूठ बताती थी पिता की आमदनी: भवानी देवी

ओलंपिक में क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज भवानी देवी

पिछले ही हफ़्ते तमिलनाडु की भवानी देवी (Bhavani Devi) की वजह से फ़ेंसिंग (Fencing) को रातोंरात भारत में 
एक बड़ी पहचान मिल गई. ओलिंपिक्स के सवा सौ साल के इतिहास में ये पहला मौक़ा  है जब किसी भारतीय को ओलिंपिक्स (Tokyo Olympic) का टिकट हासिल हुआ है. 27 साल की भवानी  रियो ओलिंपिक्स तक नहीं पहुंच पाईं लेकिन उनका संघर्ष जारी रहा और वो 2021 में  इतिहास कायम करने में कामयाब रहीं.  सीएएस भवानी देवी की कामयाबी की वजह से आयोजित हुए पहले नेशनल वर्चुअल प्रेस कॉन्फ़्रेंस में भवानी देवी ने NDTV से पूछे गए सवाल पर बताया कि उन्होंने कैसे ये खेल बचपन में  एकाएक ही चुन लिया. वो बताती हैं, "मेरे क्लास में पांच गेम चुनने की अनुमति मिली थी. 
लेकिन मुझे आख़िर में मौक़ा मिला और मेरे हिस्से फ़ेंसिंग ही आया और इस तरह शुरुआत  हो गई. फिर मेरा मन इस खेल में लगता गया और वो मैं ये सफ़र तय करती रही."  एक पुजारी की बेटी होने की वजह से उनसे पूछा जाता था कि उनके पिता की आमदनी क्या  है तो वो उसे बढ़ाकर बताती थीं ताकि उन्हें खेलने का मौक़ा मिल सके. वो कहती हैं कि इस 
महंगे खेल में शुरुआत तो लकड़ी के ही तलवार से ही हो पाई. महंगे इंपोर्टेड तलवार के टूट  जाने का ख़तरा होता था. लेकिन जैसे-जैसे गेम में निखार आया इक्विपमेंट भी मिलते गए.बड़ी बात ये भी है कि वो अपने संघर्ष भरे सफ़र का दुखड़ा नहीं रोतीं.

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वो कहती हैं कि  संघर्ष तो रहा लेकिन कई लोगों ने मदद भी की. वो हंगरी में हुए ओलिंपिक क्वालिफ़ाइंग  वर्ल्ड कप से पहले भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट के लिए अकेले सफ़र करती रहीं.  उनके परिवार को इसे लेकर डर भी लगा रहता था. लेकिन परिवार का भरोसा बना रहा  और वो सबके भरोसे पर खरा उतरती रहीं. अपने कोच सागर लागु और इटालियन कोच  निकोलो ज़ानोटि की तारीफ़ करते भवानी थकती नहीं हैं. ये दोनों हंगरी में वर्ल्ड कप के दौरान मौजूद भी रहे. 

भारतीय फ़ेंसिंग फ़ेडरेशन के अध्यक्ष और भारतीय ओलिंपिक संघ के महासचिव राजीव मेहता  कहते हैं कि भवानी की कामयाबी से इस खेल को बूस्ट तो मिला ही है, वो ये भी ज़ोर देकर  कहते हैं कि खेल मंत्री किरेन रिजिजू ने इसमें बड़ा सहयोग दिया है. वो बताते हैं, "फ़ेंसिंग के  इतिहास में पहली बार खेल मंत्रालय ने उन्हें 31 मार्च से पहले इस खेल पर 20 करोड़ रुपये  खर्च करने को कहा है. इसलिए फ़ेंसिंग फ़ेडरेशन पूरे भारत में 50 एकेडमी खोलने जा रहा है. 

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इसके अलावा ज़िला स्तर पर भी 50 एकेडमी खोलने की योजना है. इससे देश भर में इस  खेल को बढ़ावा मिलेगा."  गो स्पोर्ट्स की एक्ज़ेटिव डायरेक्टर दीप्ति बोपैया बताती हैं कि कैसे दिग्गज क्रिकेटर  राहुल द्रविड़ ने उनके फ़ाउंडेशन को चुनौती दी कि वो कोई ऐसा खेल चुनें जो हाशिये  पर हो, लाइमलाइट में नहीं हो और उसे महिला खिलाड़ी खेलती हों. इसलिए अकेली  भवानी की कमायबी एक पूरे टीम की कामयाबी बन गई है और भवानी देवी इसे पूरी  विनम्रता से सबको बताती भी हैं. 

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भवानी को फ़ुटबॉल और वॉलीबॉल खेलना भी बेहद पसंद है. आंखों में एक चमक के साथ  भवानी बताती हैं कि एथेंस और बीजिंग ओलिंपिक्स में 2004 और 2008 में निजी इवेंट में  गोल्ड मेडल जीतने वाली बांये हाथ की अमेरिकी फ़ेंसर मैरियल ज़ैगुनिस उनके रोल मॉडल हैं. 125 साल के  इन खेलों के इतिहास में ओलिंपिक्स में पहुंचने वाली पहली भारतीय होने का कारनामा  वो कर चुकी हैं..दीपा कर्माकर की तरह वो अपने गेम को भी गुमनामी से शोहतर का सफ़र  तय करवाने का इरादा रखती हैं. क्या टोक्यो में ओलिंपिक्स के फ़ाइनल में पहुंचना या उससे आगे भी जाने के अपने जज़्बे से भवानी एक बार फिर सबको हैरान कर पाएंगी?