
भारत के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ एथलीट 91 साल के मिल्खा को हाल ही में कोविड हुआ है और अब उनके लिए भी ये सफ़र बेहद लंबा साबित हो रहा है. मिल्खा सिंह को ऑक्सीजन के गिरते स्तर के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया है, तो वहीं उनकी 82 साल की उनकी पत्नी निर्मल कौर (भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान) भी अस्पताल के आईसीयू वॉर्ड में शिफ़्ट की गई हैं. दोनों के ऑक्सीजन लेवल को लेकर इलाज जारी है. राहत की बात ये है कि उनके परिवार और लाखों फ़ैंस के दुआओं के सहारे उनके जल्दी स्वस्थ होने की उम्मीद की जा रही है. चंडीगढ़ के इस अस्पताल में सांसों की जंग लड़ते मिल्खा सिंह अपने साथ फिर से यादों का कारवां ले आए हैं. कोविड की महामारी ने उन्हें और उनके परिवार को भी अपनी चपेट में ले लिया है. 50 और 60 के दशक में मिल्खा हर रेस में सांसों की सीमा पार कर अपना जलवा बिखेर देते थे. पद्मश्री मिल्खा की शख़्सियत इस बात से भी समझी जा सकती है उनके बाद किसी दूसरे भारतीय खिलाड़ी को कॉमनवेल्थ गेम्स में एथलेटिक्स का गोल्ड जीतने में 52 साल लग गए.
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Very compassionate gesture by hon'ble PM @narendramodi Ji to call up the great Milkha Singh Ji and enquire about his health. PM Modi also expressed hope he will be well soon so that the Indian contingent at the Tokyo games can be motivated by his words of wisdom. pic.twitter.com/YBZBcOBnwF
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) June 4, 2021
2010 कॉमनवेल्थ गेम्स की गोल्ड मेडल विजेता एथलीट बाइट- कृष्णा पूनिया कहती हैं, "1958 से 2010 तक का लंबा सफ़र रहा. वो पहले भारतीय एथलीट बने जिन्होंने कॉमनवेल्थ में गोल्ड मेडल जीता. मैंने 2010 में जीता तो खुद मिल्खा ने मुझे बधाई दी. मेरे लिए प्राउड मोमेंट था." 1960 के रोम ओलिंपिक्स में चौथे नंबर पर आने वाले मिल्खा की कामयाबी की फ़ेहरिस्त बेहद लंबी है. चलिए नजर दौड़ा लीजिए:
1960 के रोम ओलिंपिक्स में चौथे नंबर पर रहे
1958 के कार्डिफ़ कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीता
एशियन गेम्स में 4 गोल्ड मेडल जीते
1960 से 1998 तक उनके 400 मीटर का नेशनल रिकॉर्ड कायम रहा
1959 में पद्मश्री से नवाज़े गए
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उन्हें नज़दीक से जाननेवाले और कवर करने वाले जानकार कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि मिल्खा कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा की वजह रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार नौरिस प्रीतम मिल्खा को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं और कहते हैं, "17-18 साल की उम्र में यंग लड़के के के माता-पिता रिश्तेदारों का कत्ल हो गया और वो भाग के दिल्ली आ गए. उनकी कहानी स्ट्रगल और सक्सेस की कहानी है. मुझे पुराने लोग बताते हैं कि नेशनल स्टेडियम में सुबह के सेशन में उन्हें उल्टियां हो जाती थी. उनके साथी कैप्टन डोगरा, कोहली और किशन सिंह जैसे उनके साथी उन्हें बैरेक ले जाया करते थे. लगता था उन्हें ठीक होने में वक्त लगेगा. मगर शाम के सेशन में वो फिर से ट्रैक पर भागते नज़र आते थे. उनके जज़्बे को हज़ारों सलाम है."
पूर्व डिस्कस थ्रोओर गोल्ड मेडल विजेता एथलीट कृष्णा पूनिया कहती हैं, "माननीय मिल्खा सिंह को अपना आईकॉन मानती हूं. 1958 में उन्होंने CWG और एशियन गेम्स जीता. वो हमेशा से प्रेरणा रहे. मैंने बचपन से ही उनके जैसा ही करना चाहती थी. CWG में गोल्ड मेडल जीतना चाहती थी." चुनौती कितनी भी बड़ी हो मिल्खा ने कभी हार नहीं मानी. जो ठीक लगा उसे बेबाकी से बोलते भी रहे हैं. जीवन की इस रेस में भी बाज़ी वो ही मारेंगे, उनके फ़ैन्स को इसमें कोई शक नहीं.
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