
राष्ट्रमंडल खेलों में 3000 मीटर स्टीपलचेज में रजत पदक जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष बने अविनाश साबले का बचपन में बेहद तंगहाली में बिता है और वह तब भी दौड़ते थे जब महज पैदल चलने से काम बन जाता. वह अपने घर से स्कूल तक छह किलोमीटर की दूरी को दौड़कर तय करने के साथ ही अपनी अधिकांश गतिविधियों को इसी तरह से करते थे. उनके माता-पिता को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि कम उम्र से ही उनके बेटे की रोजमर्रा की दिनचर्या धीरे-धीरे एथलेटिक्स में करियर की ओर ले जाएगा. साबले की विनम्र पृष्ठभूमि ने उनके कोच अमरीश कुमार का भी ध्यान आकर्षित किया, जिन्होंने साबले की प्रतिभा को पहचान लिया और फिर उनके करियर ने उड़ान भरी.
कोच भले ही आते जाते रहे लेकिन दिवंगत निकोलई स्नेसारेव का स्टार स्टीपलचेसर अविनाश साबले के दिल में अलग स्थान है क्योंकि उन्होंने इस अंतरराष्ट्रीय एथलीट को निखारने में काफी योगदान दिया.
साबले ने शनिवार को राष्ट्रमंडल खेलों की 3000 मीटर स्टीपलचेज स्पर्धा में केन्या के मजबूत एथलीट को पछाड़ते हुए रजत पदक जीता. बेलारूस के कोच निकोलई ने सेना के साबले का आत्मविश्वास बढ़ाने में अहम भूमिका अदा की. निकोलई का 2021 में निधन हो गया था.
Our Avinash Sable ???????? broke the 3000m Steeplechase National Record for the record 9th time, clocking 8:11.20 to win India's first-ever Steeplechase Medal at the #CWG
— SAI Bengaluru (@SAI_Bengaluru) August 6, 2022
Congratulations and best wishes from @sai_bengaluru
????????@avinash3000m#Cheer4India#IndiaTaiyaarHai#India4CWG22 pic.twitter.com/JGyRm9Gutd
साबले की आवाज उनके बारे में बात करते हुए रूंध गई, उन्होंने कहा, “मैं उस चीज को कभी नहीं भुला पाऊंगा जो कोच निकोलई स्नेासारेव ने मेरे लिए किया. मेरे जीवन में कई कोच आए, कई गए लेकिन उनका मेरे करियर पर प्रभाव पूरी जिंदगी रहेगा. उन्होंने मेरे सोचने का तरीका बदला. मैंने अपनी जिंदगी में इतना ईमानदार कोच नहीं देखा.”
उन्होंने कहा, “जब ओलंपिक की तैयारियां चल रही थीं, तब उनका निधन हो गया (मार्च 2021 में). वह मेरे लिए बहुत मुश्किल समय था. मैं कभी नहीं सोच सकता था कि भारतीय केन्याई खिलाड़ियों को पछाड़ सकते हैं, मुझे लगता था कि भारतीय केवल अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने जाते हैं. लेकिन उन्होंने इस सोच को बदल दिया.”
साबले ने शनिवार को 8.11.20 मिनट का समय निकालकर 8.12.48 मिनट का अपना राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा. वह केन्या के अब्राहम किबिवोट से महज 0.5 सेकंड से पीछे रह गए. केन्या के एमोस सेरेम ने कांस्य पदक जीता.
इस 27 साल के खिलाड़ी ने कहा, “जब मैं एक बच्चा था, तब मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं एक एथलीट बनूंगा और देश के लिए पदक जीतूंगा. यह नियति है.”
???? with a photo finish race. Saw for the first time an Indian outdoing 2 Kenyans and making one more to run for his life. Missed the gold by 0.05Sec
— SAI Bengaluru (@SAI_Bengaluru) August 6, 2022
It's absolutely massive run. Significance of this run we may not be able to fully comprehend.
@avinash__sable great going champ pic.twitter.com/jwbzL05XE2
पांच साल पहले भारतीय सेना से जुड़ने के बाद साबले ने प्रतिस्पर्धी खेल में हाथ आजमाना शुरू किया. उनकी सफलता इस बात का प्रमाण है कि अगर हौसले बुलंद हो और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो ऊंचाइयों को छूने से कोई नहीं रोक सकता.
महाराष्ट्र के बीड जिले के मांडवा गांव में एक गरीब किसान के परिवार में जन्मे साबले ने 3000 मीटर स्टीपलचेज में अपने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को बार-बार तोड़ने की आदत बना ली. बर्मिंघम में उनके पदक के महत्व को इसी से समझा जा सकता है कि 1994 के बाद इन खेलों में पदक जीतने वाले पहले गैर-केन्याई बने. लंबी दूरी के धावक साबले के नाम तीन स्पर्धाओं में राष्ट्रीय रिकॉर्ड है. उनके नाम 5000 मीटर (13:25.65) और हाफ मैराथन (1:00:30) राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी हैं. उन्होंने मई में बहादुर प्रसाद का 30 साल पुराना 5000 मीटर का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था.
वह बारहवीं कक्षा पास करने के बाद माता-पिता को आर्थिक रूप से समर्थन देने के लिए भारतीय सेना में शामिल हो गए, और इससे उनका जीवन बदल गया. खेलों में सफलता के अलावा, वह अब एक ‘जूनियर कमीशन ऑफिसर' भी हैं.
भारत और दुनिया भर के कई शीर्ष खिलाड़ियों ने अपने खेल को स्कूल के दिनों में भी गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था लेकिन साबले ने काफी देर से शुरुआत की. साल 2015 में जब वह 21 साल के थे तब उन्हें पांच महार रेजिमेंट में शामिल किया गया था. उन्हें सियाचिन और फिर राजस्थान और सिक्किम में तैनात किया गया था. सेना के प्रशिक्षण और विषम परिस्थितियों में रहने की आदत ने उन्हें एक सख्त इंसान बना दिया.
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— Olympic Khel (@OlympicKhel) August 6, 2022
Avinash Sable brings India's first-ever medal in men's steeplechase at Commonwealth Games#B2022 | #IndiaAtB2022 | #AvinashSable | @avinash3000m pic.twitter.com/N1QJg0lJwh
भारतीय सेना में शामिल होने के बाद उनका वजन 76 किग्रा तक पहुंच गया. और एक दिन उसकी रेजिमेंट में एक क्रॉस कंट्री रेस होनी थी और वह इसमें भाग लेना चाहते थे लेकिन उनका वजन इसमें बाधा बना. ऐसी स्थिति में वह अपने दूसरे साथियों की तुलना में सुबह जल्दी उठ कर अभ्यास शुरू कर देते थे.
जल्द ही यह उनके जीवन का हिस्सा बन गया. वह इसके बाद राष्ट्रीय क्रॉस कंट्री चैम्पियनशिप जीतने वाली सेना की टीम का हिस्सा बने और व्यक्तिगत स्पर्धा में पांचवां स्थान हासिल किया. इसी समय वह अपने पूर्व कोच कुमार से मिले. कुमार सेना के भी कोच थे.
दोनों के साथ आने के बाद सब कुछ इतिहास बनता चला गया. साबले ने साल 2017 में क्रॉस कंट्री से 3000 मीटर स्टीपलचेज में भाग लेना शुरू किया. साबले की विनम्र पृष्ठभूमि ने कोच को काफी प्रभावित किया.
See what Avinash Sable has done !
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) August 6, 2022
India is proud of #AvinashSable ???????? pic.twitter.com/W6nHrhMeYF
उन्होंने कहा, “मेरे लिए, एथलीट की पृष्ठभूमि बहुत महत्वपूर्ण है. जो लोग विनम्र परिवारों से आते हैं, गांवों से आते हैं, उन्होंने जीवन में सबसे खराब परिस्थितियों का सामना किया है, वे विपरीत परिस्थितियों से डरते नहीं हैं और कड़ी मेहनत करना चाहते हैं.”
उन्होंने रविवार को कहा, “मैंने जिन एथलीटों को प्रशिक्षित किया, उनमें साबले विशेष और दूसरों से अलग थे. उसके पास मजबूत इच्छाशक्ति है और वह किसी भी विषम स्थिति से वापस आ सकता है.”
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